हर इंसान किसी कारणवश मजबूर होता है किंतु वह उसका सामना खुद ही करता है। नीरज त्यागी कहते हैं की लाख मजबूरियों से गुजरो लेकिन मजबूर न दिखो। इस प्रकार की मनोबल बढ़ाती हुई पंक्तियाँ हमें लाचारी से संघर्ष का संदेश देती हैं।
रूह की गर्त पर एक नकाब लपेटे हूँ,
टूटे सपनो में अब भी आश समेटे हूँ।दुखों की कड़कड़ाती धूप बहुत है।
खुशी की सर्द हवा की उम्मीद समेटे हूँ।क्यूँ हुआ तू किनारे, सोचता है क्यूँ भला,
देख पीपल के नीचे रखे भगवान का नजारा।टूट जाये अगर भगवान की मूरत का कोना,
वो भी पीपल के नीचे, दिखता है मजबूर बड़ा।फिर से हौशलो को जिंदा करके खुद को बना,
ना दिखे मजबूर तू, अपना एक आशियाँ बना।~ नीरज त्यागी
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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