हर हिंदुस्तानी का जो अभी फर्ज़ है,
मां भारती का हम सब कर्ज है।
घर में रहे सब यही हमारा अर्ज़ है,
कॉरोना को हराने का यही मर्ज है।।
करे इक्कीस दिन का तप यही राष्ट्रधर्म है,
अपनों के लिए तप करने में क्या हर्ज है।
रक्षाकवच तोड़कर मरने का कैसा तर्क है,
क्यों हम बना रहे देश को एक नर्क है।।
चलो मिल के मिटाए देश को मिला जो दर्द है,
अपने वतन को बनाना फिर से वही स्वर्ग है।
नियम मान बचना है उससे हो रहा जो अनर्थ है,
फिर मानवता को भी देना नया अर्थ है।।
~ श्वेता कुमारी