अहंकार का नशा

अहंकार का नशा

अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। हम सभी को ईश्वर से कामना करनी चाहिए कि वह हमें अहंकार से मुक्त रखें। कलमकार नीकेश सिंह ने अहंकार जैसे विषय पर अपने विचार इस कविता में प्रस्तुत किए हैं।

 

मै चार पैसे क्या कमाने लगा?
मुझ पर अहंकार छाने लगा।।

अहंकार का अस्तित्व बढ़ता ही गया।
मैं अहंकार के नशे में जकड़ता ही गया।।

ना जानता था कि लोगो के अहसान यूं भूल जाऊंगा।
भूल तो मै यह भी गया था कि उनके बिना मै कहां जाऊंगा।।

मै अहंकार में डूबकर लोगो को भुलाने लगा।
ज़रा सा कष्ट जो पड़ा मुझे मेरा अतीत याद आने लगा।।

मै चार पैसे कमाने में ना जाने कहां खो गया।
अपने सारे रिश्तों को पीछे ही छोड़ गया।।

चार पैसे कमाने के चक्कर में मै जी ही नहीं पाया।
अहंकार में रहकर मै अपनो से कुछ कह भी नहीं पाया।।

पैसे कमाने का नशा कुछ ऐसा चढ़ा था ।
कब अहंकार आया पता ही ना चला था।।

अहंकार का नशा जब टूटा।
संसार की सारी बंदिशों से मै छूटा।।

छूटते ही संसार की सारी बंदिशों से मुझे मेरा अतीत याद आ रहा था।
याद करके मै अपने अतीत पर आंसू बहा रहा था।।

अहंकार का नशा जब टूट जाता है।
स्वार्थ में लिपटा हुआ पापी भी निस्वार्थ बन जाता है।।

अहंकार होने की जो भूल हुई उस पर मै पछताता हूं।
आगे से मुझ पर अहंकार ना आए मै ऐसी कसम खाता हूं।।

~ नीकेश सिंह यादव

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