हाथी और दर्जी

हाथी और दर्जी

शरारतें कभी-कभी पुरानी दोस्ती को भी दुश्मनी में बदल देतीं हैं। एक ऐसा ही प्रसंग कवि मुकेश अमन ने अपनी कविता में लिखा है, आप भी पढें कि कैसे हाथी और दर्जी की दोस्ती शत्रुता में परिवर्तित हो गई।

एक हाथी और दर्जी में था,
बहुत घनेरा प्रेम, दोस्ती।
प्रेम-भाव से मिलते-जुलते,
पाते सच्ची जीवन मस्ती।।

हाथी नदी किनारे हरदिन,
करने जाता स्नान, जलपान।
उसी डगर के बीच सफर में,
आती थी दर्जी की दुकान।।

दर्जी देता रोटी रोज,
कभी न करता इसमें भूल।
हाथी भी था प्रेम का पक्का,
लेकर देता ताजे फूल।।

एक दिन दर्जी की एवज में,
बैठा था दर्जी का बेटा।
बहुत शरारत, बदमाशी भी,
करता था दर्जी का बेटा।।

हाथी आया सूंड पसारी,
और लड़के ने सुई चुभो दी।
चली आ रही प्रेम-परम्परा,
क्षण में काट, दुश्मनी बो दी।।

हाथी को फिर आया गुस्सा ,
नदी में जाकर कीचड़ लाया ।
कीचड़ छिड़क, धो दिये कपड़े ,
बदमाशी का सबक सिखाया।।

दर्जी का बेटा हुआ अचंभित,
लगा सोचने, यह क्या बला ?
हाथी कहने लगा, ओ! सुन ले,
कर भला तो हो भला।।

~ कवि मुकेश बोहरा ‘अमन’

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