ट्रैफिक की जाम कभी करती थी परेशान
लोगों की चिल्लाहट भरी भीड़
कानो को जाती थी चीर!
आज ये सड़कें ‘सहमी-सुनसान’
कह रही मानो..
लगा दो मुझपर फिर वही ‘जाम’।
अब नहीं चिल्लाहट कोई,
ना मुहल्ले में गरमाहट कोई..
गलिया उदास बुलाती हैं!
पर ‘मे-मे’ और ‘भौ-भौ’ की भी आवाजें नहीं आती हैं!
हम बैठे घरो में,
लगाए टक नजरों की
देश-दुनिया की खबरो में।
कभी रविवार का इंतजार,
कभी कोई बहाने होते तैयार
छुट्टियों की ताख में फिरते थे कभी,
आज उन्हीं छुट्टियों के मारे
मस्तिष्क अधीर हो रही।
समय खाली ढूंढते थे कभी
अब “यह खालीपन” खलने लगी!
~ अंजनी