अवनीश कुमार वर्मा ने इस कविता में एक बच्ची के सीखने की ललक और उसके खेल के अंदाज को चित्रित करने का प्रयास किया है। वह लड़की डॉक्टर साहिबा का अनुकरण करती है।
रोज देखते हैं लड़की न्यूज़
हर दिन लड़की की कमाल,
चौराहें पे जो वो लड़की
रोज नर्स-डॉक्टर का खेल
घास फूस से सुई बना रही हैं
कहती है डॉक्टर बनुगी तो ऐसे
ही ईलाज करूगी।
आते जाते लोग पूछते हैं
क्या मेरा भी ईलाज़ करोगी
बोलती है पहले सीखने तो दो,
दिन रात मेहनत करने से
अपना देश, खुद का मेहनत
लड़की वो किसी की प्रार्थना में नही जी रही होती है।
खुश हैं खुद की मेहनत से
जो उसके लिए उसका अपना मेहनत है।~ अवनीश कुमार वर्मा