मानवता के शत्रु

मानवता के शत्रु

कुछ दिन पहले यह समाचार पढ़ कर मेरा मन द्रवित ह़ो गया कि मजदूरो ने आगरा से लखनपुर तक पहूंचने का भारी भरकम किराया अदा किया क्या इंसान अपनी इंसानियत खो चुका है कि इस त्रासदी मे भी लूटपाट और उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा है धिक्कार है ऐसे नरभक्षियों पर इसी बिषय पर कविता प्रस्तुत कर रहा हूं

यह कैसा समाज कैसे हैं ये लोग
मानवता.को भूल गए, लगा के मदिरा के भोग
काम क्रोध मद लोभ मोह से ग्रस्त हैं अपना लिए यह रोग
पैसा कमाने की होड़ मे छोड़ा करना सहयोग

संकट के समय मानवता को भूल गए हैं
दानवता के पथ पर चलकर
पैसा ही इनका ईमान भूल गए हैं ये भगवान
लालच के चक्कर मे बन बैठे शैतान
झूठी माया झूठी शान कि खातिर तजा आत्मसम्मान
संवेदना को छोड़कर दंभ घमंड को बनाया अपनी पहचान

राष्ट्र भयानक त्रासदी से जूझ रहा है
मानवता का शत्रु मासूमो का लहू चूस रहा है
जनता त्रासदी से त्रस्त
आदि व्याधियो से ग्रस्त
नेता लोग भोगविलास मे मस्त
अधिकारी कर्मचारी माल कमाने मे व्यस्त
जनमानस के हौंसले हुए पस्त

मजदूरों का पलायन जारी है
भूख प्यास से व्याकुल संकट उन पर भारी है
मौत का तांडव जारी है फैली हुई महामारी है
उनके कष्टों का निवारण करना किस की जिम्मेदारी है

लीडर लोग मग्न है
आत्मप्रचार की लगन है
झूठे आश्वासन देना उनका काम है
संकट की घडी मे शोषण करना उनका काम है
इंसानियत को कर रहे शर्मिंदा और बदनाम है
आम जनता उनकी हरकतों से परेशान हैं

हे नीतिनिर्धारकों बनाओ ऐसा प्लान
जिस से हो जन जन का कल्याण
देश कोरोना मुक्त हो यही मेरी कामना
आओ मिलकर करें इस विकराल समस्या का सामना
इंसानियत का हाथ कस कर थामना
करते रहें सदा हम प्रार्थना

~ अशोक शर्मा वशिष्ठ

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