पर्यावरण दिवस २०२०

पर्यावरण दिवस २०२०

प्रकृति का संतुलन बनाने और प्रकृति से मिली सम्पदाओं के सरंक्षण करने के लिए हमें आगे बढ़ना चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आइए हम सभी पर्यावरण के संरक्षण का संकल्प लें। पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। 

आज हमारे हिन्दी कलमकारों ने अपने विचार, अभिव्यक्ति और संदेश अपनी कविताओं में प्रस्तुत किए हैं।

• पौधे की माँ ~ सचना शाह

अभी कुछ ही दिन पहले
तो मैं माँ बनी हूँ एक पौधे की माँ
मुझमे वैसा ही वात्सल्य उमड़ा
जैसे मिट्टी में नहीं वो मेरे गर्भ में हो
जब पानी देती थी मैं सुबह
महसूस किया मैंने उसकी
आगे बढ़ने की हर चाह
मुझे भी इंतज़ार था उसका
बेसब्री से देख रही थी राह
जब पहली बार उस नन्हे बीज ने
पौधा बन अपनी आंखें खोली
ख़ुशी से मैं हो गई बावली
मैं हर पल उसे निहारती
उसे खाद और पानी डालती
कभी घूप में बैठाती तो कभी
सबकी नजरों से छुपाती
मिट्टी के भीतर से अब
वो मुझे टुकुर-टुकुर देखता है
रोता नहीं है वो बस खिलता है

मेरे प्यार भरे स्पर्श से
वो खिलखिलाकर हँस पड़ता है
बहुत मासूम है मेरा पौधा
और थोड़ा नटखट भी
हवाओं संग करता हैं अठखेलियां
मानो स्वं बासुरी के धुन में
झूम उठे बंसी के बजैया
वो कोमल कोमल उसके तने
वो सुकून देती चमकीली पत्तियाँ
मेरा रोम रोम पुलकित हो उठता हैं
देख उसकी अठखेलियां।

~ सचना शाह
कलमकार @ हिन्दी बोल India

• प्रकृति की गुहार ~ डाॅ0 तारिका सिंह

घोर सितम किया
बडे जुल्म ढाए हैं
ढेरों नदियों पाटीं
कई जलश्रोत सुखाए हैं
मैंने तो अनुपम उपहार में
जीवन का वरदान दिया
तुमने मेरे जंगल काटकर
सपनों के महल बनाए हैं
कलकल स्वच्छ बहती नदी को
हरी भरी मनोरम धरती को
क्यों बंजर मरूस्थल बनाए हैं
कल कारखाने बनाना
तरक्की की निशानी है
प्रदूषण का धुआं बढा तो
हर तरफ जहर घुल आए हैं
गोद में मेरी पले बढे पर
कचरे के ढेर लगाए हैं
मैंने तुम्हें शांति सिखाई
तुमने एटम बम गिराए हैं
मेरी संपदा नष्ट किया जब
निसर्ग औरअम्फान आए हैं
अब भी संभलो अब भी चेतो
तुमने खुद पर दांव लगाए हैं

~ डाॅ0 तारिका सिंह
कलमकार @ हिन्दी बोल India

• प्रकृति शक्ति ~ अमित कुमार चौधरी

सौम्य रूपा

प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा
कोमल हृदय! मोहक सुंदरता।

नील गगन है, आँचल सारा
जड़ा हुआ है, चांद-सितारा।

प्रभाकर है, नेत्र तुम्हारा
खोले सुबह, मूँदें अंधियारा।

श्वेत हिमगिरि, झरते झरने
बहती नदियां, कल-कल करते।

विपिन सुरभित सा, घना-घना
अवनि ने मानो, अंक धरा।

हे! प्राणवायु, अन्न-जल दाता
तेरा रौद्र रूप डराता, सौम्य रूप है मनभाता।

रौद्र रूपा

भूस्खलन, नदियों की बाढ़
ज्वालामुखी, शोलों का अंगार।
भूकम्प, धरती की अंगड़ाई
सुनामी,समुंद्र से आयी।
बादल फटना, बिजली गिरना
आँधी, तूफान और बरसात।
प्रकृति शक्ति के रौद्र आकार
धारण करती, मनुष्य से हार।
स्वार्थ से उसके,दोहन से अपने
असंतुलित होती, थक-हार।
प्रकृति शक्ति रौद्र रूपा हो
अपने को संतुलित करने को।
पुनः सौम्य रूप धरने को
जीवन मंगलमय करने को।

~ अमित कुमार चौधरी
कलमकार @ हिन्दी बोल India

• चलो पर्यावरण बचाए ~ पुजा कुमारी साह

चलो पर्यावरण बचाए।
ईश्वर ने धरती पर सबसे सुंदर रचना,
इंसान को ही बनाया।
सोचने समझने की अद्भुत,
कलाकृतियों को सजाया।
अब हमारा फ़र्ज़ है पर्यावरण के,
जीव जंतुओं को बचाना।
चलो पर्यावरण बचाए
चलो पर्यवरण बचाए।

वृक्ष रोपकर करे संरक्षण
पर्यावरण,परिंदों का अंगरक्षण।
बादल, बरखा, सीतल-छाया
पेड़ो से है हम सब का काया।
चलो पर्यावरण बचाए,
चलो पर्यावरण बचाए।

पेड़-पौधों, से ही हरियाली व ख़ुशहाली आएगी,
सरितओ को कूड़ा करकट से बचाना होगा।
तभी मनुष्यता का फ़र्ज, हमारा पूरा होगा,
चलो पर्यावरण बचाए, ये प्रण हमारा होगा।

~ पुजा कुमारी साह
कलमकार @ हिन्दी बोल India

• प्रकृति अपनी स्वरूप की ओर अग्रसर ~ आलोक राय

हर बार
प्रकृति जरूरत से अधिक दिया
फिर भी मानव संतुष्ट नहीं
और विपरीत बर्बादी की ओर अग्रसर है।
मैं अपना स्वरूप की कर अग्रसर हूं।

हर बार
प्रहार करता मानव मुझे पर
और मैं प्रहार करता
एक बार
महामरी प्रहार से
लोगो को घर में बंद करके
अपना स्वरूप की ओर अग्रसर हूं।

हर बार
लोग मुझे दुखी होकर बोलते
प्रकृति ने अपना स्वरूप दिखा दिए।
मेरा स्वरूप मेरा मौजदगी है
मेरा मृत्यु
सभी मानव का मृत के बाद है।
मैं अपना स्वरूप की ओर अग्रसर हूं

हर बार
संदेश देता हूं
मैं हूं तो
तुम हो
मेरा स्वरूप ओर छोड़ दो
मुझे ना बदलो हे मानव
मै प्रकृति हूं अपनी स्वरूप की अग्रसर हूं।

हर बार
हरा भरा होने का उम्मीद करता हूं
लोभी मानव
जरूरतमंद पूरी करने की लालच में
मेरी प्राण लेने की तुले हुए
अपनी रुख के लिए
अपना स्वरूप की ओर अग्रसर हूं।

~ आलोक राय
कलमकार @ हिन्दी बोल India

• देख ये पर्यावरण मर रहा है ~ नीलेश मालवीय

मत काट ये झाड़ पेड़
उन्होंने तेरा क्या बिगाड़ा है
तेरे जन्म से तेरे अंत तक
बस उनका ही सहारा है
तुझे सांसे देने वाला वो
अंतिम सांसे भर रहा है
अब तो रुक जा मानव
देख ये पर्यावरण मर रहा है

कल कल करती नदिया को
क्यों अपनी माता कहता है
मत भूल उन्हीं के जल से
तू इस जग में जिंदा रहता है
उनको गंदा करके क्यों तू
अमृत को विष कर रहा है
अब तो रुक जा मानव
देख ये पर्यावरण मर रहा है

ये मिट्टी सोना तो देती है
तू फिर भी लालच करता है
उत्पाद बढ़ाने के चक्कर में
तू उसमें रसायन भरता है
यूं दवा डाल डालकर बस
तू उसको बंजर कर रहा है
अब तो रुक जा मानव
देख ये पर्यावरण मर रहा है

~ नीलेश मालवीय “नीलकंठ”
कलमकार @ हिन्दी बोल India

This Post Has One Comment

  1. Akanksha

    बहुत बहुत बेहतरीन मेरी दोस्त 💖💖

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