इसका न वैक्सीन है न दवाई है,
धरती पर ये कैसी बीमारी आई है।
विश्व की महाशक्तियों को भी इसने,
पलक झपकते खासा धूल चटाई है।
इस अदृश्य खूंखार विषाणु के आगे,
परमाणु बमों ने भी पटखनी खाई है।
ना मिलो इक दूसरे से कुछ दिनों तक,
इसको केवल मारेगी तनहाई है।
जिसने इसको लिया हल्के में अगर,
वही जानता कीमत क्या चुकाई है।
लापरवाह मूर्ख किस्म के लोगों पर,
इसने अपनी अच्छी पैठ बनाई है।
घर में कैद रहो जब तक ये जिंदा है,
इसी में सारी दुनिया की भलाई है।
सरकार ने समय पर लाकडाउन करके,
ना जाने कितनों की जान बचाई है।
मंदिर मस्जिद चर्च शिवाले बंद हुए,
डाक्टरों ने बखूबी जिम्मेदारी निभाई है।
उसके पास भटकता भी नहीं यह कीड़ा,
जिसने पूर्ण सावधानी अपनाई है।
इसके कुटिल इरादों को जो जान गया,
इस महामारी पर विजय उसी ने पाई है।
~ रूपेन्द्र गौर