महामारी के घाव को
खेल रहे हो बड़े दाव से
वो नो आउट पे बॉल मार रहा है
और तुम वाहन रूपी गेंद दे रहे हो
हुआ लोकडॉउन लगी धारा
फिर भी तुम चडा रहे हो पारा
कहीं चोराये दूत खड़े
कही अस्पतालों में ईश्दूत पड़े
वो रब देव तुम्हें दे रहे है मर्ज
क्यों नहीं निभा रहे हो अपना फ़र्ज़
है इसका कहर भारी, तुम ही फैला रहे हो महामारी
गाड़ी बाइक छोड़ घर पर धर
खुद सोच भाई और बन जा नर
~ प्रेम जांगिड “पथ भूला परदेशी”