पलायन ही तो मेरे जीवन की सच्चाई है
कभी प्रकृति की मार से तो
कभी जगत के स्वामी की अत्याचार से
पलायन तो मुझे ही करना पड़ता है।
कभी अपने लिए, तो कभी अपनों के लिए
पलायन ही तो मेरी जीवन यात्रा है।
सुखा पड़ा तो परिवार के साथ
जीवन बचाने के लिए पलायन,
बाढ़ आए तो उसकी त्रासदी से
बचने के लिए पलायन,
और तो और हड्डियाँ जमा देने वाली
ठंड़ में, जंगली पशुओं से फसलों की
रक्षा के लिए झोपड़ी से खेतों की ओर पलायन।
सांसे थम जाती है पर
पलायन का सील-सीला नहीं थमता,
पीढ़ी दर पीढ़ी साये की तरह
पलायन पीछा कर रही है।
रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन
यदि फैक्ट्री बंद हो तो गांव की ओर।
आज फिर से वही दिन आया है,
अमीरों ने महामारी लाई और
भुखे-प्यासे, पुलिस और प्रकृति की
मार खाते, निर्मम पैदल रास्ते
ठोकरें खाते हुए,
रोटी और छत के लिए गांव की ओर पलायन।
पलायन ही तो मेरे जीवन की सच्चाई है।
~ पूजा कुमारी साव