आंखें फिर भर गईं

आंखें फिर भर गईं

मन के भावुक हो जाने से आँखें भर जाती हैं, चाहे मौका खुशी का हो या फिर गम के पल। कलमकार विजय कनौजिया जी कहते हैं कि प्रेमवश भी आंखों में नमी आ जाती है।

आज उनसे मुलाकात
फिर हो गई
बात ही बात में
बात फिर हो गई।

उनके चेहरे की रंगत
मुझे भा गई
थोड़ा मुस्काए वो
चाह फिर हो गई।

जो थे शिकवा शिकायत
सिमट से गए
दिल से दिल की लगन
आज फिर हो गई।

प्रेम ऋतु का सृजन
आज फिर से हुआ
उनसे नजरें मिलीं
आंखें फिर भर गईं।

खोया था जाने कब से
मधुर ख़्वाब में
कोई आहट हुई
नींद फिर खुल गई।
नींद फिर खुल गई..।।

~ विजय कनौजिया

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