फरवरी २०२१ – अधिकतम पढ़ी गई कविताएं

FEBRUARY-2021: 1) होता कोई महत्व नहीं ~ हरिओम गौड़ • 2) विदाई ~ मधु शुभम पांडे • 3) मन की प्रीत ~ अर्चना शर्मा

१) होता कोई महत्व नहीं

हरिओम गौड़
कलमकार @ हिन्दी बोल India
SWARACHIT2463

बार-बार कोशिश करने पर
जब हार गया हो अंतर्मन,
तब खुशियों भरे संसार का
होता कोई महत्व नहीं।
जब गैरों के बल ऊपर उठकर
विजय ध्वज फहराया जाए,
तो ऐसी विजय पाने का
होता कोई महत्व नहीं।
शिक्षित कितने भी हो लेकिन
यदि सम्मान गुरु का न कर पाए,
तो ऐसे शिक्षित होने का
होता कोई महत्व नहीं।
जब सुंदर शरीर से अंतर्मन
बोल उठे कटु-कटु वचन,
तो ऐसी मिली सुंदरता का
होता कोई महत्व नहीं।
प्रेम भाव जब मन में हो
मगर क्रोध पर नियंत्रण हो,
तो ऐसी प्रेम की भावना का
होता कोई महत्व नहीं।
जब आँख बंद कर निद्रा में
सुंदर स्वप्न दिखने लगे,
तो ऐसे आभासी सपनों का
होता कोई महत्व नहीं।
जब ऊँचे पद को हासिल करके
माँ-बाप को ठुकरा दो,
तो ऐसे महान बनने का
होता कोई महत्व नहीं।।

२) विदाई

मधु शुभम पांडे
कलमकार @ हिन्दी बोल India
21SAT01049

हो रही थी बेटी की विदाई,
बाबा अकेले में सिसक रहे थे।

सामने नही रोये बेटी के,
जाते ही उसके, आँसू बहा रहे थे।

मेरे हृदय का टुकड़ा है बेटी
हाथ जोड़ कर दामाद से कह रहे थे।

महीनों से सोए नही ठीक से,
अन्जान व्यक्ति को बेटी सौंप रहे थे।

जमाने की सारी खुशियां देकर,
खुद की खुशियां बेटी में देख रहे थे।

न जाने कितने बाप जमीन बेच देते हैं,
क्योंकि बेटी की खुशियां खरीद रहे थे।

लाल जोड़े में देख अपनी गुड़िया को,
खुद को खुशनसीब समझ रहे थे।

लाडली को सौंप पति के हाथों में,
कन्यादान करते समय आंसू रोक रहे थे।

सामने न दिखती तो परेशान होते थे,
आज खुद से ही दूर कर रहे थे।।

खिलखिलाहट थम गई बेटी के जाते ही,
रो रोकर बेटी को विदा कर रहे थे।

दस्तूर है ज़माने का बेटी विदा करने का
बाबा भी ये दस्तूर निभा रहे थे।।

३) मन की प्रीत

अर्चना शर्मा
कलमकार @ हिन्दी बोल India
SWARACHIT2422

तन का आचंल छोड़कर वो
मन का आचंल सी रही थी ,
इस गली से उस गली तक
ढूंढ़ती वो आशियाना,
मन की प्रीत ना कोई जाने
तन की रीत निभाये सब
तन की प्रीत को छोड़कर
वो मन कि प्रीत को ढूंढ़ती,
इस गली से उस गली तक
ढूंढ़ती वो आशियाना,
जानती थी, सबके सम्मुख
एक हरण हो जाएगा
फिर वही फेरो में मेरा
एक वरण हो जाएगा
फिर वही दौलत से मेरा
अंतरण हो जाएगा
रीत प्रीत निभाऊंगी तो
एक मरण हो जायेगा
कैसे में समझाऊ उनको
प्रीत के धागे नही हैं
मन तो मेरा छोटा सा हैं
तन का मुजेमालूम ना था
माँ का विस्तत जान लूं में
कैसे छोड़ू इनका आचंल
कैसे पल्लू थाम लू
कैसे रीत निभाऊंगी
कैसे प्रीत चलाऊंगी
गुड्डे गुड़ियों को में अपने
संग में कैसे बांध लू
कैसी दादी की कहानी
कैसी नानी की पहेली
संग में अपने ले चलूंगी
इस गली से उस गली तक
फिर चली में इस डगर से उस नगर की ओर में
एक नगर कब दो हुए
कब झीनी पिणी छूटी थी
संग में अपने एक चवनि
मुठी में ले जा रही थी
अपनो को में ढूंढती थी
इस गली उस गली तक
अब जली में ज़िल्लतों से
ढूंढ़ती हु वो नमी
इस नमी को ढूंढने में उस जमीं पर थी कमी
छुट्टा आंगन छुटे सखिया
छूटी गुड्डे की वो गुड़िया
मन भी छूटा तन भी छूटा
झूठी सारी प्रीत वो

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.