त्योहार तो वही हैं, पुराने जमाने से मनाएँ जा रहें हैं लेकिन हमारे तरीके और व्यवहार में बड़ा परिवर्तन आ चुका है। कलमकार खेम चंद ठाकुर ने इसी परिवर्तन से संबन्धित कुछ पंक्तियाँ दिवाली के त्योहार पर प्रस्तुत की हैं।
आने वाला है दीपों का त्योहार ‘दीवाली’
~ खेम चन्द
अबकी बार फिर है जेब मेरी खाली,
कैसे मनाऊं अबकी बार दीवाली।
बचपन वो कितना प्यारा था,
पांच रूपये में जब आता सामान,
वो पटाखा, फुलझड़ी, अनार सारा था।
बढ़ गई मंहगाई, बढ़ गया शायद लंका से
राम वापसी और सीता माता का किराया।
पुछता है शायद भगवान भी ये,
कैसे खुशी का त्योहार मनाया।
विलुप्त हो गये मिट्टी के दीये,
ऐसे क्या थे समय के साथ सोच में गुनाह किये।
आ गई बल्बों की सुना है बाजार में लड़ी,
दीयों की कतार बस अब बातों में खड़ी।
जगह ले गये सामान नये-नये सारे,
मोमबत्ती, लड़ी, चीनी मोमबत्ती,
मिट्टी के शुद्ध बर्तनों को कर दिया किनारे।
गुंजेगी रातभर पटाखों की गूंज हर गली हर चौराहे,
बिखरा होगा कचरा हर जगह फैलाये बांहें।
त्योहार मनाकर बस समझदार प्राणी भरता रहेगा आंहें,
टिकाये नहीं टिकेगी कि साफ हो जो कूड़ा फैलाया है उसपर निगाहें।
चारों तरफ खुशी की भोर होगी,
निकलेगा धूँआ जब पटाखों से
प्रदूषित वायु हमारी कमजोर होगी।
बहुत इज्ज़त है भगवान की,
लक्ष्मी माँ की तस्वीर पर बनाया हुआ बम भी जलाएंगे,
वाह हमारी सोच का कोई तोड़ नहीं,
एक तरफ जिसकी पूजा होगी
दूसरी तरफ फूटने के बाद पैरों तले दबायेंगे।
ये कैसे है हम और कैसे ये त्योहार मनाते,
एक तरफ भगवान की पूजा होती
दूसरी तरफ भगवान को जलाते हो।
मनाऊंगा मिलकर परिवार आस पडोस संग दीवाली,
क्या हुआ जो है मेरी जेब खाली,
मन में लेकर तो हमेशा चलता हूं खुशियों की सौगात,
मनाऊंगा दीवाली वही पुराने तरीके से मिलकर अपनों के साथ।
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