कुछ हकीकतें

कुछ हकीकतें

कलमकार इमरान संभलशाही ने यह पंक्तियाँ लिखी हैं जिसमें वे कुछ हकीकतें बयान कर रहे हैं। सच तो बहुत सारे हैं जो कहने में अच्छा, सुनने में कड़वा और सहने में मुश्किल होता है।

सूअर कांपता है जमादार कांपता है
बिल्ली बेचारी और वफ़ादार कांपता है
किरौना भी परिंदा भी ना जाने क्या क्या
सर्द में इंशा भी सारा जानदार कांपता है

एक जवाब बेचता है दूसरा सवाल बेचता है
कोई उधार बेचता है कोई ख़्याल बेचता है
एक आदमी है साइकल पर सवार होकर
स्वेटर मोजा मफलर और रुमाल बेचता है

कहते है किसान है पर इंसान होता है
जो दुःख में हर सुख अपनी जान खोता है
धोखे से मछरी फंसाया और खा भी गया
वहीं आदमी गले भर खा जी जान सोता है

मोची जूता बनाता है और नीचे भी रहता है
रौब से खड़ा हुआ जो बुरा भला भी कहता है
हाथ में थमाता नहीं सिक्का फेंक देता है
चमकाने वाला सिक्का उठाना हर रोज़ सहता है

~ इमरान संभलशाही

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