आतंक को ख़त्म करें

हाल ही में एक नक्सल हमले में अनेक जवान शहीद हुए। इस घटना से सभी लोग आहत हैं और कलमकार मनीष कुमार मौर्य ने अपने मन के भाव इस कविता में जाहीर किए हैं। हम सभी चारों ओर अमन और शांति चाहतें हैं।

झर-झर नीर बहे आंखों से भृकुटी चढ़ी आकाश है,
कोई कविता न गीत, ग़ज़ल यह दिल की धधकती आग है।

दे दो खुली छूट सेना को, नक्सल, आतंक को ख़त्म करें,
दिल्ली  के सिंहासन वालों, अब एक पल न देर करें।

जितने छिपे अंदर और बाहर ,सबको सबक सीखा दो तुम,
आत्मसमर्पण करें ठीक, नहीं गोली सीने के पार करें।

कितनी बहनें भाई खोई, कितनी मां बेऔलाद हुईं,
अनाथ हुए बच्चे कितने, कितनी सुहागन सुहाग खोईं।

दीप जला के, फूल चढ़ा के, ‘मन’ कब तक शोक मनायेंगे,
सच्ची श्रद्धांजलि तभी,जब सारे कचरा को साफ करें।

~ मनीष ‘मन’


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