कलमकार खेम चन्द ने हिमालय के वनों पर इंसान की दखलंदाजी से प्रकृति में होने वाले बदलाव को अपनी कविता में लिखा है। आप भी पढें और प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लीजिए।
सुनो और गौर करना, फिर बातों पर विचार करना
सुनाऊं मैं तुम्हें एक कहानी॥
बातें ये आज की नहीं है; है कुछ सदियों पुरानी॥
जब बहुयायात में बहते नदी नाले
और स्वच्छ कितना होता था पानी॥
काटे जा रहे पेड़ और जलाये जा रहे हैं जंगल
कैसे होगा हम समझदार मानव प्राणियों का मंगल॥
घट रहे चील, बढ गये क्या भील;
क्यों कर रहे हैं हम पर्यावरण को बचाने में इतनी ढील॥
हर जगह बसाई जा रही है बस्तियां,
कैसे नहीं मिटेगी एक रोज हमारी हस्तियाँ॥
कितने घट चुके हैं पक्षी, मानव न बन तू इतना भक्षी
सीख ले कर्तव्य कुछ रक्षी॥
न कहीं शेर, बाघ, भालू, बर्फानी तेंदुआ, कस्तूरी हिरण, नीलगाय,
नहीं दिख रहे हैं हाथी॥
क्या इनके बचाव का नहीं है, हममें से कोई इनका साथी॥
दूषित हो गयी है जलवायु, घट रही हम प्रणियों की आयु॥
आंखें हम सभी की हो गयी है लगता आंध
हर नदी-सरिता पर बनाये जा रहे हैं बांध॥
यूं न पृथ्वी के समझदार प्राणी नियम की सीमा लांघ॥
दूर नहीं है विकट होगी परिस्थतियां जब वो आने वाली सांझ॥~ खेम चन्द