तीन तीस बजे- वो आखिरी साँस

तीन तीस बजे- वो आखिरी साँस

खाये पीये अच्छे से ही सोये थे कि गैस रिसाव हो गया,
कुछ भागें किन्तु भाग न सके और थोड़ी दूर जा गिर पड़े,
जीव जन्तु जानवर बेसुध पडे, कुछ सोये के सोये रह गये,
कुछ कंधे पर कंधा रख सांत्वना देते हुए दुनिया से गुजर गये,
दोष किसको दे, दर्द किससे कहें, जिंदगी का भाव बेभाव हो गया,
कई दशकों पहले भी भोपाल गैस काण्ड की त्रासदी हो चुकी है,
इससे भी बड़ी घटना हो चुकी है किन्तु सत्तासीन अभी जगे नहीं है,
आखिर कब इनकी नींद टूटेगी,
आखिर कब तक तीन तीस बजे की वो आखिरी साँस छूटती रहेगी.

~ डॉ कन्हैया लाल गुप्त “किशन”

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.