ये कैसी लीला तेरी भगवन, कैसी ये घडी आई है।
बेबस असहाय लगता मानव, कैसी ये महामारी छाई है।।
जहाँ हैं वहीं रहने को, लोग हो गए हैं मजबूर।
‘कोरोना” ने अपनों को, अपनों से भी कर दिया है दूर।।
सर्वशक्तिमान का दंभ भी, चकनाचूर हो रहा है।
त्राहिमाम कर रहे, रोज हजारों मौत की नींद सो रहा है।।
हो रहीं लगातार कोशिशें, फिर भी मौत का तांडव जारी है।
रुकने-थमने का नाम ही नहीं, परेशान दुनियाँ सारी है।।
विज्ञान ने भी किया आत्मसमर्पण, इसका कोई ईलाज नहीं।
सिमटे रहो घरों में सब, और कोई दूजा काज नहीं।।
बहुत हो चुका हे सृष्टिनियंता! बस और नहीं अब रहम करो।
करुनानिधान करुणा कर के, भीषण इस विपदा को हरो।।
~ रमाकान्त शरण