मां के आँचल तले सुख

मां! मुझे जीवन भर, तेरे आँचल का आश्रय चाहिए
आँचल तले स्वर्गीय सुख का, मां! वही अनुभव चाहिए
अनुपम सुख और शांति, मां! केवल तुझसे है
सब कुछ तेरे आँचल तले, मां! प्रेममय होना चाहिए।

कठोर पीडा़ में भी, मां! वही छांव चाहिए
घोर अशांति में, मां! शांति का भरमार चाहिए
तेरे पैरों तले मां! सब न्यौछावर कर दूं
दिन-रात मां! केवल तू ही तू रब सा चाहिए।

होठों पर मुस्कुराहट तेरी, हमेशा बनी रहनी चाहिए
जब कष्ट में हो मां तू, हर ओर घनी अंधेरी चाहिए
मां! तेरा हरपल, सिर पर हाथ रहे
यही चाहत हर संतान की मां! यूंही बनी रहनी चाहिए।

मां सी अनुपम कृति इस जग में, इस बात में दो राय नहीं चाहिए
हां मां तूझ सा कोई नहीं, हर एक के दिलों-जां में यही बात होनी चाहिए।

मां के ममत्व, वात्सल्य, प्रेम, डाँट, पुचकार
किस-किसका, करूँ मैं वर्णना?
वर्णन में हैं हम अक्षम, हां यही बात सबमें होनी चाहिए
मां तेरी हर बात मुझे, ऐसे ही जिंदगी भर चाहिए।

हां मां तूझसे ही ये मेरा संसार, संसार ये मेरा हरपल सजा चाहिए
हर पल, हर क्षण केवल
तू, तेरा प्यार यूंही चाहिए।

तेरे गुणों का मां हर युग में, ऐसे ही बखान चाहिए
एक गुण ना है मां, तुझमें हजारों गुण हम पाइए
मां! तेरे आँचल तले ये मेरा संसार
यूं ही सजा चाहिए।

~ पूजा कुमारी साव


मां के बिना कोई अस्तित्व नहीं

मां के बिना, कोई अस्तित्व नहीं हमारा,
उनके बिना, हर तरफ है अंधियारा,
उनके द्वारा ही, हम देख पायें हैं जगत की उजियारा,
ना हम रहेंगे, ना मां रहेंगी
लेकिन, उनके वजूद से हैं हमसब
ये सत्य हमेशा, सबके करीब रहेगी।

हम हंसते हैं, वो भी हंस देती हैं
सारे कष्टों को, आसानी से सहती हैं
बच्चों के कष्टों को भी, हर लेती हैं मां शब्द में, दुनिया की विशालता है
मां शब्द की, व्याख्या नहीं की जा सकती क्योंकि,
व्याख्या तो सीमाबद्ध चीजों की की जा सकती है।

करने की व्याख्या या बखान
करते हैं, कोशिश बडे़ विद्वान-महान
पर छूट ही जाता, कुछ ना कुछ
मां ही तो हैं, हमारा सबकुछ।

जन्म से कर्म तक
पूरी सिद्धत से है, अपना कर्तव्य करती
फिर भी, कितनी ठोकर-बात है सहती।

मां वो, अनमोल रतन है
जिसे है कद्र,
उसकी कीमत सिर्फ, वही जाने।

~ पूजा कुमारी साव

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