विजयादशमी की शुभकामनाएँ और कलमकारों के संदेश इन कविताओं मे पढ़ें। यह आशा बनाएँ रखें कि असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की जीत होगी।
विजयादशमी
विजयादशमी का पावन त्यौहार आया,
साथ में अनेको खुशियों और,
सत्यता का मार्गदर्शक लाया,
बेशक उस मार्ग पर अनेक कठनाई,
उलझने, मुसिबतें, रुकावटे,
काँटों से बिछी राह होंगी,
फिर भी सत्य के मार्ग पर चलना,
छूटे न कभी सच का साथ,
टूटे न कभी सब्र का बाँध
बुराई पर अच्छाई की जीत होकर रहती,
पाप का घड़ा जब भर जाता
तब पतन का समय हो जाता,
आये विष्णु अवतार राम,
करने बुराई का अंत और,
रावण का सर्वनाश,
कट गए दश भुजा लंकेश के,
उसके ही कुकर्म से
सोने की लंका जल गयी,
फिर भी न टुटा अभिमान,
इतना बलशाली होने पर भी
सीते के मामूली से तिनके
को पार न कर सका,
ज्ञान के सामने अज्ञान की
शक्ति रूढ़ हो गयी
सत्य हमेशा असत्य पर पड़ती भारी,
नेकी के साथ चल,
बाधााएँ होती जाएगी दूर,
अपने अंदर के क्रोध, अहम्,
अभिमान इर्ष्या, कपट, कलह
रूपी रावण को मिटा कर,
मन में राम के नाम का दीप जलाकर
अच्छाई, सच्चाई, त्याग, सदभावना,
बलिदान, सद्गुण और प्रेम जगाएँ
माँ शैलपुत्री
~ धीरज कुमार शुक्ला “दर्श”
माँ शैलपुत्री की गाथा
होती कुछ इस प्रकार है
वृषभ वाहन है इनका
शिव इनके है भर्तार
शैल का अर्थ पर्वत से होता
पुत्री है जो पर्वत की
शैलपुत्री वो कहलाती है
सती रूप में जन्मी थी पहले
जिद करके पिता घर गयी
नहीं देखा जब शिव का भाग
क्रोध से ये सब देख रही
शिव के अपमान को देख
यज्ञ में ये कूद पड़ी
शिव के गणों ने मिलकर
यज का फिर विध्वंस किया
लेकर मृत देह सती की
शिव ने जग भ्रमण किया
विष्णु ने देह को मां की
सुदर्शन से विछिन्न किया
शिव ने बाद उसके
समाधि में खुद को लीन किया
जब जन्म हुआ फिर से माँ का
हिमालय के घर जन्म लिया
मैना की पुत्री को फिर
शैलपुत्री कहा गया
मां! मुझे चलना सिखा दे
मां मेरी उंगली पकड़कर, फिर मुझे चलना सिखा दे।
मैं उज्जाला बन सकूं मां, दीप सा जलना सिखा दे।।
थक गया हूं मां बहुत अब, इस जहां का गान सुनकर।
गोद में मुझको सुला कर, मां कोई लोरी सुना दे।।
ग़र कहीं सुख है जहां का, मां तुम्हारी गोद में है।
आज मां ममतामयी इस, गोद में मुझको सुला दे।।
फिर कदम ना डगमगाएं, थाम लूं जब हाथ तेरा।
चल सकूं मैं भी अंधेरों, में मुझे चलना सिखा दे।।
हर घड़ी निष्कामना से, कर्म पथ की ओर दौड़ू।
पथ प्रदर्शक बन के हर एक, मार्ग तू मुझको दिखा दे।।
मैं गमो से दूर होकर, के भी हर गम को समझ लूं।
मां तू अपने प्यार की, हर सादगी मुझको सिखा दे।।
हर अंधेरी झोपड़ी में, रोशनी बन कर रहूं मैं।
मां मुझे दीपक बनाकर, दीप सा जलना सिखा दे।।
माँ कल्याण कर दे
आत्मबल को कर प्रबल
जनमानस का कर शोधन
कुपित मन और कुविचारों के
मार्ग में अवरोधक बन।
बन लक्ष्मी तू सौभाग्य दे
धर रूप काली का
सृष्टि का अनुशासन कर
मधुर स्वरों का वरदान दे
हर कंठ में हो विराजमान।
ले रूप नवदुर्गा का तू
प्रकृति को नवस्वरूप दे
हर ले रूप महामारी का
सृष्टि का पुनः सृजन कर।
अधःपतन देख धरा का
आकुल हैं हर प्राणी
भर दिव्य ऊर्जा हर नर-नारी में
हे माँ इस धरा का कल्याण कर दे।
माता का दरबार
माता का दरबार निराला लगता है,
मईया जी का प्यार निराला लगता है,
पल भर में माँ जोड़ती है भूले रिश्ते,
मईया का संसार निराला लगता है,
मैं तेरे दरबार में तो आ गया माता,
छोड़कर संसार मै आ गया माता,
तू दुलारे या मुझे अब तार दे माता,
मैं पड़ा दर तेरे अब हाथ रख माता,
दूर कर उलझन मेरे संमार्ग दे माता,
कष्टों को अब दूरकर पास रह माता।
विजयादशमी
अपने अंदर की बुराई जैसी भी हो बुराई ही होती है
ये छोटी बड़ी नही हो सकती
बुराई का मतलब बुराई ही होता है
आप इसका आंकलन
किसी दूसरे के बुराई से नही कर सकते,
अपनी बुराई बैंक में जमा हुई पूंजी नही है
जिसे हम रोज बढ़ाते जाएं,
बुराई एक दीमक का घर होता है जो धीरे धीरे
शरीर, मन, आत्मा, परिवार सबको नष्ट कर देता है
बुराई को खत्म करने के लिये कोई वैद्य नही आएगा
आपके पास सिर्फ आप ही इसे सुधार कर सकते हैं
वो भी बिना वैद्य की डिग्री के,
हम हर साल रावण के पुतले को
बुराई का प्रतीक मान कर जला कर आ जाते हैं,
पुतला तो जल जाता है लेकिन
अपने मन की बुराई जस के तस रहती है
क्योंकि आपने केवल पुतले को मारा है।
अपने मन मे बसे रावण के प्रतीक को
आपने एक शब्द भी नही कहा
क्योंकि ये आपका शरीर है
कोई रावण का पुतला थोड़े ही है।
एक बार अपने अंदर के बुराई को जलाने की कोशिश कीजिये
बेशक कुछ असहज महसूस होगा
जो कुछ दिनों में सहजता के रूप में आ जायेगा
सबसे पहले अपने मन की बुराइयों को ही देखिए
बाकी संसार मे क्या बुराइयां कहाँ तक व्याप्त हैं
उन्हें पलक उठा के मत देखिये
आपके परिवार की दुनिया आपसे बनती है
आपकी दुनिया आपके परिवार से।
कन्या पूजन
ज़ब हो सुरक्षित इस देश मे
हर एक कन्या तब ही तुम
ये नवरात्रि का व्रत धरना.
देख ना सको हर गर नारी को
इज्जत भरी निगाहों से तुम
तो कन्या पूजन मत करना.
तुमने भीं जन्म लिया उसी से
कन्या को भीं उसी ने जन्मा
हर स्त्री मे क्यूँ नहीं दिखती
तुम्हे एक बस अपनी माँ,
कभी निगाहों से कभी शब्दों से
करते हो उसका तुम तिरस्कार
क्यूँ याद आता नहीं तब वो
रक्षाबन्धन वाला बहन का प्यार,
कपड़ो पर तुम उसके करते
सदैव भद्दी सी कुछ टिप्पणियां
फूलों सी कोमल बच्ची को रोंदते
ना याद आती तुम्हे अपनी मुनिया,
तुम नहीं क्या किसी के रखवाले
नहीं तुम्हारी कोई अर्धांगिनी
फिर क्यूँ तड़पाते हो उसको
चीखे कर उसकी अनसुनी,
क्या पौरुषत्व का है मान
एकमात्र उसका अहम
स्त्री तुम बिन कुछ नहीं
ये बस तुम्हारा है वहम,
सुधर जाओ गर थोड़ा
सीख कर ममता का
हर तुम सम्मान करना
गर ये भीं ना कर पाओ तो
अबकी बार कन्या पूजन
बिल्कुल भीं मत करना..
तू भाग जगाने वाली
तू भाग जगाने वाली, मैं दुखीहारा बेचारा
तू भाग जगाने वाली, मैं दुखीहारा बेचारा।
तुझसे ही आशाएं है मां तू ही मेरा सहारा।।
तू भाग जगाने वाली …
इस जग में अंबे मां अनेकों फूल खिलाए
धूल चरणों की पाकर हम भवसागर तर जाए
तू है दाती देने वाली, तू है दाती देने वाली
मैं ग़मों का मारा …
तू भाग जगाने वाली, मैं दुखीहारा बेचारा
दुनिया में अंबे मां, तुझसे होता है सवेरा
नाम तेरा लेने से, सब मिट जाता है अंधेरा
तू मां मेरी ममता वाली, तू मां मेरी ममता वाली
मैं तेरा लाड दुलारा …
तू भाग जगाने वाली, मैं दुखीहारा बेचारा
हम सब दिन दुखी मां, तेरे चरणों में आए
हर मोड़ पर कांटे हैं,और विपदा हमको सताए
मैं शिवम तेरे द्वार खड़ा मां, शिवम तेरे द्वार खड़ा मां
तेरे आंखों का तारा …
तू भाग जगाने वाली, मैं दुखीहारा बेचारा
तुझसे ही आशाएं है, मां तू ही मेरा सहारा
तू भाग जगाने वाली, मैं दुखीहरा बेचारा
तू भाग जगाने वाली …
माता का आगमन
कर के सौलह श्रृंगार,
माँ पधारी आज हमारे घर,
कर के शेर की सवारी,
लाल चुनरी के जोड़े में,
आगमन हुआ माँ का,
करने नकारात्मक शक्तियों को पराजित कर,
सकरात्मक ऊर्जा का संचार।
लेकर अपने नौ अवतार,
शैलपुत्री, बह्मचारिणी, चंद्रघटा,
कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यानी,
कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री,
इस नवरात्री के पावन अवसर पर,
भक्तो के कष्टों को दूर करने तथा,
मधु कैटव का संहार करने आयी।
अपने एक हाथ में कमल धारण,
दूसरे हाथ में माला लिए हुए,
करने भक्तो पर उपकार,
सब पर करुणा दर्शाने वाली,
अमृत बरसाने वाली,
कभी कालरात्रि बन दुष्टों का नाश करती,
आज नारी की आतंरिक शक्ति को जगाने माँ पधारी।
आसान नहीं है रावण होना
आसान नहीं है रावण होना
आसान नहीं है रावण होना,
बहन की अपमान का बदला लेने,
सब कुछ जान कर भी,
भगवान से शत्रुता मोल लेना,
परायी स्त्री का अपहरण कर,
एक बाहुबली होते हुए भी,
कभी अपनी मर्यादा की लकीर को,
न लंघना, आसान नहीं है रावण होना।
युद्ध में सुनिश्चित हार देख कर भी,
अंतिम सांस तक,
अपने राज्य के सीमा की,
रक्षा करते हुए,
प्रभु श्री राम के चरणों में,
अपने प्राण की आहुति देना,
कहां आसान है,
किसी का यूं ही,
रावण बन जाना।
तुम राम न सही,
रावण ही बन जाओ,
मातृभूमि पर चढाई करे जो भगवान,
तुम उनसे भी लड़ जाओ।
परायी स्त्री का,
चलो तुम,
सम्मान करना सीख जाओ।
तुम राम ना सही,
चलो रावण ही बन जाओ!