यादें तो किसी भी पल आप को भावुक बना देंगी, इनका कोई भरोसा नहीं है कि ये कब आपको अपनी गिरफ्त में ले लें। अमित मिश्र ने इसी दशा को संबोधित करते हुए चंद पंक्तियाँ लिखी हैं- “तेरी याद आई है”।
आज फिर मुझको तेरी याद आई है,
तेरी एक पुरानी तस्वीर घर में पाई है।
दुवा है जिधर भी रहे तू सलामत रहे,
मेरे दिल में आज भी छाई तनहाई है।
मेरा दिल आज फिर क्यों झूम रहा है,
मुझे लगता है कि तू फिर मुस्कुराई है।
इन हवाओं में एक प्यारी सी खुशबू है,
ऐसे लगता है फिर तू गजरा लगाई है।
आज फिर मुझको तेरी याद आई है,
तेरी एक पुरानी तस्वीर घर में पाई है।
मेरा दिल फिर क्यों बेचैन होने लगा है,
ऐसे लगता है तू फिर से ली अंगड़ाई है।
आज सावन की घटा क्यों छाने लगी है,
मुझे लगता है तू गेसुओं को लहराई है।
आज दर्द फिर हद से क्यों बढ़ने लगा है,
आज फिर तू कसम मेरी झूठी खाई है।
दर्द सह – सह कर आदत सी हो गयी है,
पुराने जख्मों को छेड़ कर क्या पाई है।
आज फिर मुझको तेरी याद आई है,
तेरी एक पुरानी तस्वीर घर में पाई है।
~ अमित मिश्र
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