दोस्त और दोस्ती की बातें भी निराली होती है। नाराजगी, झगड़ा, अनबन, ताने, सुझाव, प्यार सब कुछ दोस्ती देती है और शायद इसीलिए यह सबको भाती है। कलमकार अनुभव मिश्रा के विचार भी इन पंक्तियों में पढ़ें।
भीड़ की मुझे जरूरत नहीं ना ये
पंडित किसी काफिले का तलबगार है,
मुकम्मल मानता हूँ खुद को जिसकी बदौलत मैं
वो तो मासूम सी शक़्ल का कमीना मेरा यार है।तेरे बिना कोई वजूद नहीं मेरा
एक तेरी दोस्ती पर ही तो मुझे गुमान है
हमारी इतनी पुरानी दोस्ती को
चंद लफ़्ज़ों में बयां करना,
थोड़ी ना कोई आसान काम है.वो मस्ती करना साथ में तेरे क्लास
बंक करके घूमने जाना क्या तुझे ध्यान है,
वो चंदे के पैसे से चाट पकौड़ी खाना मानो
उस चाय की ठेली पर अपनी
दोस्ती का भी एक मकान है।दोस्त तुझे कहने पर
कभी कभी प्रश्न चिन्ह लग जाता है,
महज़ दोस्त ही नहीं भाई है तू मेरा
हर बार यही परिणाम आता है।तेरी यारी है मेरा ईमान है,
तेरे बिन जैसे हर पल बेईमान है,
तू जरूरी कुछ इस कदर मुझको
जैसे उड़ते परिंदे को जरूरी आसमान है।दूर जाता है तू तो घबरा सा जाता हूँ मैं
खुद में ही कहीं गुमराह हो जाता हूँ मैं
हर पल निभाऊगां साथ मैं तेरा
कसम है तुझको छोड़ना ना
कभी हाथ तू मेरा।~ अनुभव मिश्रा