हिन्दी दोहे

हिन्दी दोहे

श्रृंगार के दोहे

नील कमल से नैन हैं, पलकें पात समान।
मधुर अधर मकरन्द हैं, रम्भा रूप समान।।

चन्द्रानन सा गोल है, पूनम सी है देह।
मंगल सी बिंदिया लसे, केतू हुआ विदेह।।

स्वर्णलता सी देह पर, मधुर अधर से फूल।
दिव्य फलों से दिख रहे, कर्ण रहे जो झूल।।

रजताभा से माथ पर, अलक गयी है छूट।
बंक भृकुटि से लग रही, गयी पिया से रूठ।।

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा
कलमकार @ हिन्दी बोल India

गुरु की महिमा

गुरु चरणन की धुलि, सदा रखो सिरमौर
आफत बिपत नाहिं कभी, आवैगी तेरी ओर।

गुरु ज्ञान की होवें गंगा, गोता लगा हो चंगा
बिन ज्ञान वस्त्रधारी भी, दिखता अक्सर नंगा।

गुरु की वाणी अमृत, वचन उनके अनमोल
स्मरण रखो सदा उन्हें, जग जीतो ऐसे बोल।

गुरु की तुलना ना करो, उन जैसा नहिं कोय
आखर ज्ञान भी लिया जो, आजीवन ॠणी होय।

गुरु ज्ञान की पोटली, नवकर सीखो पाठ
शब्द ही उनके मंत्र हैं, रटौ उन्हें दिन रात।

गुरु ऊंचा भगवान सै, इनका कद अनबूझ
सम्मुख सदा विनम्र रहो, कर जोरि प्रश्न पूछ।

गुरु पुकारें झट दौड़िए,सब कारज को छोड़
आज्ञा पूरी करौ उनकी,प्राणन की नहिं सोंच।

गुरु से पाओ ज्ञान रस, होवैं रस की खान
कठिन अभ्यास से ना डरो, लगा दो अपने प्राण।

अनुमति बिन नहिं आओ, बिन आज्ञा न जाओ
आतै जातै पांव छुओ, जीवन धन्य बनाओ।

गुरु शिष्य की परंपरा, नष्ट कभी ना होई
पीढ़ी दर पीढ़ी चलै, मनुज सदा इसे ढ़ोई।

मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
कलमकार @ हिन्दी बोल India

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