हे सुचित, पुलकित, हर्षित, मनभावन व पावन धरती।
“मां” तुम ही सबके दु:ख दर्द को समय समय पे हरती।।
सबके घर-द्वारे, अन्न-धन के, तुम ही भण्डार हो भरती।
कृषक के कर्म की कल्पना को, तुम ही साकार हो करती।।
गगन तुमसे, अग्नि तुमसे, है शीत मौसम-पानी तुमसे।
तुमसे है अस्तित्व हमारा, है यह बुढ़ापा-जवानी तुमसे।।
ऐसी असीम ममता को हम, याद सुबह शाम करते हैं।
नतमस्तक होकर हम सभी, तुम्हें सादर प्रणाम करते हैं।।
~ हिमांशु बडोनी (शानू)