कभी-कभी हमें ऐसे धोखों का सामना करना पड़ता है जो अपने लोगों ने ही दिए होते हैं। ऐसी परिस्थिति में किसी पर भी विश्वास करना मुश्किल लगता है। इस स्थिति को कलमकार शुभम ने अपनी कविता में जताते हुए लिखा है- गैरों पर भरोसा कैसे करें।
गैरों पर भरोसा कैसे करें,
जब अपनों ने ही खुद,
हमारी थाली में जहर परोसा।ये जमाना ही है भरा-पड़ा,
हर जगह धोखा ही धोखा,
इसमें कुछ नहीं है झरोखा।सजग रहना हर पल,
अपने हो या पराये,
सभी हैं इस मिथ्या जग के साये।साया जहन में जो बस,
रूह काँप उठती है,
इतनी डरावनी तो अमावस्या की रात भी नहीं होती है।~ शुभम द्विवेदी
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/413304212910090
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