तेरी बनाई इस सृष्टि में भगवान,
इंसान अब डरा-डरा सा हैं।
कहने को सिर्फ वो जी रहा,
लेकिन अंदर से मरा-मरा सा है।।
हर जगह सिर्फ मौत की खबरे,
सुना पडा ये संसार है।
बच गये तो समझो सुन ली भगवान ने,
वरना समझना दुआएं तुम्हारी बेकार है।।
आज भगवान तुरन्त याद आया,
जब खुद को मौत सामने दिख रही।
डर की इस अफरातफरी में,
सस्ती चीजे भी महंगी अब बिक रही।
इक्कीस दिन अब घर में बंद हो गए,
महंगे फल, सब्जी और कंद हो गए।
काम धंधा छोड़ बैठे रहे अब घर पर,
और चिंता से दिमाग सबके मंद हो गए।।
बैठा मन किसी का चुप नही रहा,
अपने घर में भी कोई छुप नही रहा।
सरकार ने लगा दिया अब यहा पुलिस का राज,
इसलिए अब अपने आपका भी कोई भूप नही रहा।।
~ गजेन्द्रसिंह राजपुरोहित ‘युवा सरताज’