भूख भुला देती है अक्सर पैरों में पड़े उन क्षालों को
नहीं रुक सके कदम किसी के लॉकडाउन हड़तालों से।
गलती इनसे हुई नहीं है पूछो इक बार बेहालों से
हिंदुस्तान ये अपना चलता है सूखी रोटी के निवालों से।
इस महामारी से ज्यादा भय भूखे रहकर के जीने से
अब नहीं कटेगा इससे ज्यादा बिन रोटी पानी पीने से।
फेल हो गया जनता कर्फ्यू और रोड भरी लाचारों से
देखो नेताओं अब देखो देश ते चलता है निवालों से।
जननी माँ भी आज रो पड़ी देख के अपने लालों को
दुनियाँ दूर निकल गई पर भूख तो मिटती निवालों से।
साहब गाँव हमें पहुँचा दो ये शहर भरा है सवालों से
मेरे गाँव में सारे अपने हैं न मरूँगा भूखे निवालों से।
~ साक्षी सांकृत्यायन