मैं एक मजदूर हूं

मैं एक मजदूर हूं

मैं एक मजदूर हूं
मैं ठोकर खाने को मजबूर हूं
दो रोटी पाने की चाह में
मैं घर परिवार से दूर हूं
जी हां मैं एक मजदूर हूं

सरकारें आती रही जाती रही
कठिनाइयां हमारी और बढ़ाती रही
अपनी आउंछी राजनीति के लिए
मोहरा हमे बनाती रही
मुद्दाओं में भटकने को
मैं मशहूर हूं
जी हां मैं मजदूर हूं

कांधे पर बच्चों को लिए
मिलों दूर चला चल जाता हूं
तन की पीड़ा सह जाता हूं
किंतु किसी पर पत्थर नहीं उठाता हूं
प्रतिदिन दुर्घटनाओं में बेमौत मारा जाता हूं
हाय मैं सड़क किनारे जो सो जाता हूं
इस मौत के लिए कसूर क्या
मैं तो बेचारा बेकसूर हूं
जी हां मैं मजदूर हूं

~ शिवम झा (भारद्वाज)

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.