मैं दीया हूँ,
उजाले का वंशधर ,
जब तक प्राण वर्तिका
घोर तम से लडूँगा।
मैं दीया हूँ,
उम्मीद की निशानी
हर नगर, हर गली
निराशा को हरूँगा।
मैं दीया हूँ
स्वयं मौन का साथी
विरक्ति में भी तुम्हारे
अकेलापन को भरूँगा।
मैं दीया हूँ
सत्य पथ का पथिक
स्वयं को जलाकर
मार्ग रोशन करूँगा।
मैं दीया हूँ
अटल विश्वास का
भोर की किरण तक
मैं डटकर अडूँगा।
मैं दीया हूँ
जलाकर और दीपक
उजाले की निशानी
घृत रितेगा, फिर बुझुँगा।
मैं दीया हूँ
अँधेरे की साजिशों से
पूर्ण संयम, धर के धीरज
हर घड़ी हर पल लडूँगा।
~ मनोज कुमार सामरिया ‘मनु’