भीड़ हो या तनहाई, जब मन उदास होता है तो हर जगह अकेलेपन का अनुभव होता है। और यह अकेलापन किसी को काटने को दौड़ता है तो कोई इसे पसंद भी करता है। कुमार किशन कीर्ती ने भी अपने विचार इस कविता में व्यक्त किए हैं।
भीड़ में भी तन्हा हूँ
महफिल में भी अकेला हूँ
मुझे नही पता मैं ऐसा क्यों हूँ
बस, उसके बिना तन्हा-तन्हा सा मैं हूँजीवन की कुछ इच्छाए अधूरी हो गई हैं
जैसे मेरी प्रेयसी मुझसे दूर हो गई है
अंधेरों में भी उजालों की तलाश करता हूँ
अपनी अतीत में कभी खो जाता हूँ
मुझे नहीं पता मैं ऐसा क्यों हूँ
बस, उसके बिना तन्हा-तन्हा सा मैं हूँतन्हाई से अब मुझे प्यार हो गया है
जैसे किसी शराबी को मदिरा भा गया है
जीवन की सच्चाई अब समझ में आने लगी है
किसी और के बिना जिंदगी सुनी-सुनी हो गई है
मुझे नहीं पता मैं ऐसा क्यों हूँ
बस, उसके बिना तन्हा-तन्हा सा मैं हूँ~ कुमार किशन कीर्ति
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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