मै भी एक स्त्री हूँ

किसी दरिंदे का हृदय परिवर्तन करना कठिन कार्य होता है। कलमकार अतुल कुमार मौर्य ‘अल्फाज़’ की यह रचना उन हैवानों को समझाने की कोशिश कर रहीं हैं जो अपनी हवश में सब कुछ भूल जाते हैं। हर स्त्री सम्माननीय है यह कभी नहीं भूलना चाहिए।

काँच की हूँ मैं.. मत तोड़ मुझे..
टूट गयी जो मैं.. तो फिर ना जुड़ूँगी मै..
गुड़िया सी हूँ मैं.. मत मरोड़ मुझे..
बिखर गयी जो मै..
तो फिर ना सिमट सकूँगी मैं..
कुछ ख्वाहिशों को बाँध रखा है
मैने सपनों में अपनी..
जिन्दगी से रूठ गयी तो..
क्या फिर से उन ख्वाबों को बुन सकूँगी मै..
मै भी एक स्त्री हूँ..
तेरी माँ जैसी.. तेरी बहन जैसी..
जिसे पूजता है तू जगत में..
अपनी दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी जैसी..
अस्मत है मेरी भी तो उनके ही जैसी..
तू अपनी हवस के लिए..
मुझसे मत छीन इसे ऐसे ही.

~ अतुल कुमार मौर्य ‘एक अल्फाज’

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