हाँ, मैं मजदूर हूँ,
बेबश हूँ,
लाचार हूँ,
बुझाने भूख पेट की,
गालियाँ खाता,
सिसकता भ्रष्टाचार हूँ।
परिकल्पनाओं को तुम्हारी
साकार मैं करता रहूँ,
पय को तरसती अँतड़ी को
आशाओं से भरता रहा।
धर्म कोष को तुम्हारे
हरदम बढ़ाता मैं रहूँ,
कलुषित हाथों से धवल
कपूर सा जलता रहा
यज्ञ की समिधा में
काले तिल सा लाचार हूँ।
बुझाने भूख पेट की
गालियाँ खाता
सिसकता भ्रष्टाचार हूँ
~ डॉ. शशिवल्लभ शर्मा
01 मई 2020- अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर समर्पित एक कविता