जीवन की आपाधापी में हम कई बार थक जाते हैं, निराशा हमपर हावी हो जाती है और स्वयं को टूटता हुए देखकर भी हमें हार नहीं मनानी चाहिए। साकेत की इस कविता में आशावादी होने की सलाह दी गयी है।
कमजोर हूँ,
मजबूर हूँ,
लोगों कि दृष्टि में।
असफल, असहाय, असमर्थ,
थकान का मारा जरूर हूँ,
किन्तु मैं अभी हारा नहीं हूँ।
आस है,
प्रयास भी,
आगे बढ़ने की चाह में।
सहज, सविनय, समर्पित
जीवन व्यतीत किया हूँ,
किन्तु मैं अभी हारा नहीं हूँ।
आदर है,
सम्मान भी,
अपनों के लिए, साथ उनके।
हरपल, सुख, दुख
झेला जरूर हूँ
किन्तु मैं अभी हारा नहीं हूँ।
रोका है,
ठाना भी,
मंजिल मुझसे दूर रखने में।
अनुशासित, एकाग्र, विनम्र
होकर बढ़ता जा रहा हूँ
किन्तु मैं अभी हारा नहीं हूँ।
साथ आओगे,
मिलेंगे कदम भी
बनकर हमसफर तुम चलोगे।
साथी, हमदम, शुभचिंतक
बनाने की राह में चल रहा हूँ
किन्तु मैं अभी हारा नहीं हूँ।~ साकेत हिन्द