कवि हूं मैं

कवि हूं मैं

कम शब्दों में बड़ी-बड़ी बातें कह देना कवि की कला है। शब्दों का ताना-बाना बुनकर वे अपनी रचना को कविता का रूप देते हैं। कलमकार मुकेश बिस्सा स्वयं के बारे में लिखते हैं कि कवि हूं मैं।

कवि हूं मैं
लिखता हूं कुछ
पंक्तियां
जो होती है
थोड़ी आड़ी थोड़ी तिरछी
भरी जिसमे जिंदगी की आपबीती
थोड़ी खट्टी थोड़ी मीठी
कवि हूं मैं।

इस पथ पर चलना है
किस तरह
दौड़ना है किस तरह
सुख और दुख के दो राह है
जिंदगी,मृत्यु के मध्य
कुछ सिख पा लेता हूं
ज्ञान, ज्ञानियों की बस्ती में
कवि हूं मैं।

कभी सीख लैता हूं तैरना
कभी बह जाता हूं
जीवन की नाव पर
मन करता है
अपना एक दर्पण हो
इसलिए देख लेता हूं
बंद आंखों से भी
इन सभी विभिन्न रंग को
कवि हूं मैं।

व्यस्त सा हूं
जिंदगी की आपाधापियों में
जिसमें से हैं
कुछ संबंध तरतीब से
कुछ बिखरे बिखरे से
कई दिन बीत गए
कई अभी है बाकी
जीवन की अनेकों
परीक्षाओं में
कवि हूं मैं।

~ मुकेश बिस्सा

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