मैं मजदूर की बेटी हूँ

मैं मजदूर की बेटी हूँ

आओ दोस्तों मजदूरों
की दास्तां सुनाती हूँ।
दूसरों की छोड़ो मैं खुद
मजदूर पिता की बेटी हूँ।

ज़िन्दगी के हर उतर चढ़ाव
को मैंने आँखों से देखा है।
भूख से अपनी माँ को पेट में
गमछा बांधते देखा है।

एक-एक रूपये कमाने का
दर्द मैं अच्छे से जानती हूँ।
आज भी 5रूपये बचाने को
मैं रोज पैदल पढ़ने जाती हूँ।

चाँदी को पिघलाने में
साँस फुल जाता है।
आग के ताप से
खून सुख जाता है।

मजदूरी करते है, पिता।
दिन से रात हो जाती है,
बच्चों को तक़लीफ़ ना हो
इस ललक में भूखे रह जाते है।

तक़लीफ़ होता है,
पिता के इस हाल से।
बेटी नहीं बेटा बनकर,
साथ निभाती हूँ, हर हाल में।

गर्व महसूस करती हूँ, खुद में।
मैं मजदूर की बेटी हूँ।
मंजिल को पाना चाहती हूँ, हर हाल में।
ताकि लोग कहे!
मैं मजदूर की बेटी हूँ।

~ ट्विंकल वर्मा

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.