हम आज जो भी हैं वही भविष्य में भी बनें रहेंगे- यह कहना सही नहीं है। समय और जरूरतों के अनुसार पेशा, उद्देश्य और इच्छाएं बदलती रहती हैं। कुमार किशन कीर्ति को लेखन का शौक है जिसे वे भरपूर समय दे रहे हैं, वे ऐसा कर पा रहे हैं इसका उन्हें खुद यकीन नहीं होता।
यकीन नहीं होता
मैं लेखक कैसे बना हूँ?
बनना चाहता था अधिकारी
पर, कलम कैसे पकड़ लिया हूँ?
शायद, यही लिखा था और
नियति को यही मंजूर था
वरना, प्रशासन और राजनीतिक
में रुचि रखने वाला को
साहित्य कब मंजूर था?
शायद, यही होता है
हर किसी की जिंदगी में
करना चाहते हैं और, पर
अक्सर कुछ ‘और’ हो
जाता हैं जिंदगी में~ कुमार किशन कीर्ति
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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