मैं नहीं जानता

मैं नहीं जानता

जोड़ियाँ भगवान बनाता है – यह तो आपने सुना ही होगा। परंतु अपने साथी की कल्पना कर या फिर अपने संग उसे पाकर आप क्या कहोगे? कलमकर स्वाति बर्नवाल ने उस अभिव्यक्ति  को इन पंक्तियों में लिखा है आप भी पढ़ें।

मैं नहीं जानता कि सुंदर
लड़कियां कैसी होती है?
मुझे नहीं पता कि शांत लड़कियां
अच्छी होती है या चंचल
मुझे ये भी नहीं पता कि गुणवान
लड़कियां अच्छी होती है या रूपवान
लड़कियां पर मेरा ये मानना है कि
संसार की सारी लड़कियां सुंदर,
अच्छी और खूबसूरत होती है!

शायद मैं कवि होता तो
तुम्हें देखने से पहले
तुमसे मिलने के पहले मैं करता
तुम्हारी सौंदर्य,चरित्र की कल्पना
और अनुमान लगा लेता तुम्हारी
देह की बनावट और
दिखावट की और छिटक देता
अपनी कविताओं में और नितांत ही
वो किसी बड़े कवियों द्वारा सराहा जाता।

लेकिन पर जब भी मिलोगी तुम
तुम मुझे वैसी ही प्रिय होगी जैसी
कवियों के लिए कविताएं।
मैं तुमसे चांद तारे तोड़ लाने का
मिथ्या वादा नहीं करूंगा
पर ये वादा करूंगा कि कभी
तुम बीमार पड़ी तो एक वक्त का खाना
मैं खुद बना लूंगा और तुम्हें
अपने हांथो से जरूर खिलाऊंगा।

कभी दफ़्तर से आते वक्त
गजरा और हरी चूड़ियां भले ही ना
ले आऊ मैं तुम्हारे लिए
पर इतना वादा करता हूं की
आते वक्त मैगज़ीन जरूर
ले आऊंगा तेरे सपनों को पूरी
करने में अपनी पूरी कोशिश करूंगा।

मैं ये नहीं चाहता कि तुम मुझे
ईश्वर की उपाधि दो
बल्कि मैं तुमसे उपेक्षा करूंगा की
तुम अपनी सहेलियों की भांति मुझसे
अपनी अतीत के पन्नों को खोलकर
ठहांका मार कर अपनी
अतीत की कहानियां मुझे सुनाओगी।

मैं ये नहीं जानता कि दुनिया
हमारी जोड़ी को राम और सीता की
जोड़ी की तरह अपनी अपनी
कविताओं में उपमाएं देंगे,
तुम्हारी कल्पना मेरे बस की बात नहीं पर
मैं ये कल्पना करता हूं कि हमारी जोड़ी
मंगर और भकोलिया की तरह ही आदर्श होगी।

~स्वाति बर्नवाल

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