इश्क़ में हमेशा हंसी-खुशी ही नहीं मिलती, रोना भी पड़ता है। कलमकार अंकित उपाध्याय ने इसी दशा को अपनी पंक्तियों में चित्रित किया है। हँसना-रोना जीवन में लगा रहता है।
हर रातों को तकते चंदा,
मैने सोना सीख लिया है।
लड़का हूँ फिर भी सुन ले दुनिया,
मैंने रोना सीख लिया है।
ना जाने कितनी नीदें आँखों तक,
आते ही चल देती हैं।
ना जाने कितने ख्वाब हमें,
रात-रात छल देती हैं।
इसीलिए तो बना रतजगा,
यादों को ढोना सीख लिया है।
लड़का हूँ फिर भी सुन ले दुनिया,
मैंने रोना सीख लिया है।
सुनो प्रिये, हम बस्ती बस्ती,
तुम्हीं को गाने निकले हैं।
सच पूछो तो तुमपर लिखकर,
तुम्हें सुनाने निकले हैं।
लाख कहे कुछ आज जमाना,
पर हमने इश्क में होना सीख लिया है।
लड़का हूँ फिर भी सुन ले दुनिया,
मैंने रोना सीख लिया है।
हर रातों को तकते चंदा,
मैने सोना सीख लिया है।
लड़का हूँ फिर भी सुन ले दुनिया,
मैंने रोना सीख लिया है।
~ अंकित उपध्याय
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