हम सिर्फ उसे ही चाहते हैं- उसको यह बता पाना बहुत कठिन होता है। बड़ी जटिल स्थिति उत्पन्न हो जाती है क्योंकि उसे विश्वास ही नहीं होता है। ऐसी दशा में हमें कहना ही पड़ता है, “तुम मानो या न मानो, मैंने तो अपना माना है” जो कलमकार विजय कनौजिया ने अपनी कविता में लिखा है।
तुम मानो या न मानो
मैंने तो अपना माना है।
तुम चाहो या न चाहो
मैंने तो तुमको चाहा है ..।।हर स्मृतियों में तेरी ही
यादों को खूब संभाला है।
तुम याद भले ही न करना
मुझको तो याद दिलाना है ..।।अभिलाषा के हर पन्ने पर
बस तेरा नाम उकेरा है।
हर पृष्ठ सुसज्जित तुमसे है
तुमको बस इसे सजाना है ..।।आधार मेरे जीवन का हो
आभार मेरा स्वीकार करो।
तुम साथ हमेशा मेरे हो
बस ये आभास कराना है ..।।तुम मानो या न मानो
मैंने तो अपना माना है।
तुम चाहो या न चाहो
मैंने तो तुमको चाहा है ..।।~ विजय कनौजिया
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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