उसे देखता हूँ

उसे देखता हूँ

हम अपनी रूचि के अनुसार ही सारे कार्य करते हैं, हाँ!, कुछ अपवाद हो सकता है। कोई किसी को देखना पसंद करता है, मिलना चाहता है तो कहीं किसी को कोई फूटी आंख भी नहीं भाता। हर इंसान अलग है और उनकी पसंद और नापसंद भी एक जैसी नहीं होती। अमित मिश्र की स्वरचित पंक्तियाँ पढें, जिसमें कोई किसी को देखना पसंद करता है।

जब उसे देखता हूँ मैं मुस्कुराता हूँ,
अरमाँ दिल में प्यार का सजाता हूँ।
पास थी वो रात भर मेरे ख्वाबों में,
सुबह फिर से तन्हा खुद को पाता हूँ।

उसके घर के सामने से रोज जाता हूँ,
दीद की चाहत दिल में सजाता हूँ।
क्या हुआ वो रोज नजर नहीं आती,
कभी कभी तो उसका दीद पाता हूँ।

वह जब मुझे देख कर मुस्कुराती है,
मानो इशारों में दिल की बात बताती है।
क्या हुआ हकीकत में मेरी नहीं हुई,
मेरे ख्वाबों में तो वो रोज आती है।

वह चलते हुए पायल छनकाती है,
बात दिलों की वो अपने छुपाती है।
काश ख्वाबों से निकल जीवन में आए
उसके ख्यालों में नींद नहीं आती है।

~ अमित मिश्र

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/425742688332909

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