सैनिक अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है। एक बुलावे पर वह सरहद पर मुक़ाबले के लिए तैनात हो जाता है। वह अपने परिजनों से क्या क्या उम्मीद रखता यह कलमकार संतोष अपनी कविता में बता रहें हैं, आप भी पढ़ें।
कसम है तुम्हें मेरे जाने के बाद अपनी आँखों में आँसू आने न देना
रोक लेना इन आँसुओ को आँखों से बाहर आने न देना
कसम है तुम्हें मेरे जाने के बाद अपनी आँखों में आँसू आने न देनामेरे जाने के बाद थोड़ी मुस्किले होगी लेकिन खुद को संभाल लेना
कसम है तुम्हें मेरे जाने के बाद अपनी आँखों में आँसू आने न देनाबुलावा आया है सरहद पे जाना तो पड़ेगा
बहुत ऋण है मुझपे मेरे वतन की
मिला है मुझे मोका आज वो ऋण चुकाना पड़ेगा
कसम है तुम्हें मेरे जाने के बाद अपनी आँखों में आँसू आने न देना
रोक लेना इन आँसुओ को आँखों से बाहर आने न देनातेरे यूं धैर्य खोने से मैं भी धैर्य हीन हो जाऊँगा
तेरे यूं हिम्मत हारने से मैं भी हिम्मत हार जाऊँगा
मेरी हिम्मत तुम्हीं से है तुम यूं हिम्मत न हरना
कसम है तुम्हें मेरे जाने के बाद अपनी आँखों में आँसू आने न देनामैं अपने वतन का ऋण चुकाकर तेरे पास जल्द ही आ जाऊँगा
ऐ उम्मीद कभी कम होने न देना मैं जरूर आऊँगालग जाएंगे महीनों मेरे आने में
थोड़ा इंतजार कर लेना
पर तुम धैर्य न खोनाकसम है तुम्हें मेरे जाने के बाद अपनी आँखों में आँसू आने न देना
रोक लेना इन आँसुओ को आँखों से बाहर आने न देना…!!~ संतोष राम भारद्वाज