सही माना जाए तो हम सब अकेले हैं और जीवन की उधेड़-बुन में व्यस्त हैं। कलमकार मुकेश बिस्सा की यह कविता पढें।
फिरता हूँ अजनबी सा इस माहौल में
कौन मुझको शहर में पहचानता है।जो आँसू पी के हँसना जानता है
मुहब्बत को वही पहचानता हैपड़े हैं पाँव में जिसके भी छाले
सफ़र की वो हक़ीक़त जानता हैभरम कल टूट जाएगा तुम्हारा
फ़रिश्ता कौन किसको मानता हैवो किसकी याद लेकर बस्तियों में
गली की ख़ाक हर दिन छानता है~ मुकेश बिस्सा