मैं चाहता हूँ

मैं चाहता हूँ

कलमकार अपरिचित सलमान की एक कविता पढें जिसमें उन्होंने अपनी चाहत लिखी है। हम सभी के मन में अनेक इच्छाएं और अरमान होते हैं, उन्हें सबके सामने बता पाना थोड़ा कठिन सा लगता है।

चाहता हूं मैं भी
उस श्वेत कण की तरह
जो जल में घुलनशील हो
हाँ नमक ही बनना चाहता हूं
जिसमें आयोडीन का योग हो
तुम्हारे तन की सुंदरता से
श्रम जल बनकर
धारा रूप में बहूंगा
मस्तक से रिसकर
कंधे पर आऊंगा
सलाद के संग निवाले में
तीक्ष्ण स्वाद के लिए
जा समाउंगा पेट में।

मैं घुलनशील होकर
मिल जाऊंगा पसीने में
मेहनत संग तुम्हारे
बाहर हो जाऊंगा
रक्त में हर नगर के गलियारों में
झुग्गी-झोपड़ियों में
दो वक्त की रोटी के लिए
कच्चे सड़कों पर
लग जाऊंगा तन मन से
उस करने वाली के साथ
जिस माटी से श्वेत कण निकालती है
उसके महक़ते पसीने में
उसे जिन्दा किये हुए
साथ निभाता रहूँगा सदियों तक।।

~ अपरिचित सलमान

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