अगर मुस्कान तुम दे दो

अगर मुस्कान तुम दे दो

सिक्के के दो पहलू होते हैं- यह तो हम सभी जानते हैं, इसी प्रकार हमें भी पूर्ण होने के लिए किसी और की जरूरत होती है। एक दूसरे का पूरक बनने से हम परिपूर्ण हो पाते हैं। कलमकार विजय कनौजिया जी कहते हैं कि हमारे पास बहुत कुछ उपलब्ध हो सकता है, परंतु कुछ चीजों के लिए दूसरों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

लिखा है गीत फिर मैंने
मुझे संगीत तुम दे दो
मधुर सरगम बने तुमसे
जरा सी प्रीति तुम दे दो ..।।

नहीं होगी कभी फीकी
मधुर मुस्कान होठों की
मेरी मुस्कान में अपनी
अगर मुस्कान तुम दे दो ..।।

इन आँखों की नमी में
यादों के बादल गरजते हैं
आ जाए फिर से अब सावन
अगर बरसात तुम दे दो ..।।

संजोया है तुम्हारी याद को
मन के घरौंदे में
सुसज्जित फिर से हो जाए
अगर पदचाप तुम दे दो ..।।

लिखा है गीत फिर मैंने
मुझे संगीत तुम दे दो
मधुर सरगम बने तुमसे
जरा सी प्रीति तुम दे दो ..।।
जरा सी प्रीति तुम दे दो ..।।

~ विजय कनौजिया

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/424895461750965

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