क्या मिला मेरे हिस्से में,
बताऊगां बच्चो को किस्से में।
मै कितना मजबूर था?
क्यो कि मै मजदूर था।
हर रोज नया तमाशा था,
मन में मेरे भी आशा था।
मिल जायेगी सहयोग हमे,
खुशिया होंगी मेरे भी घर में
जब वो ऐलान किये,
मन में मेरे कई फूल खिले।
पर ये तो सारे वादे थे,
पता नही उनके क्या ईरादे थे।
हर रोज का समय निर्धारित था,
करना उनको थोड़ा थोड़ा पारीत था।
हर वर्ग को वो कुछ देते थे,
फिर हम से ही मांग लेते थे।
पुंजिपतियो को सम्मान मिला,
हमको बस तिरस्कार मिला।
अब हा आस खत्म हुई,
वो बोल तो दिये हम दे तो रहे सही।
मूठी भर आनाज से मैने तुमको पाल लिया,
सरकारी बाबू ने मेरी हर विनती को दरकिनार किया।
ये उस वक्त कि कहानी है बच्चो,
जब पूरा देश था बैठ गया।
~ धीरज गुप्ता