भौतिकता की चाह में हम सब
बसुधा को भी भूल गये ,
चन्द्र खोज के बल पर मन में
दंभ ग्रसित हो फूल गये ।
सागर पाटे, जंगल काटे
और फिर मांसाहार किया
जो देते थे जीवन हमको ,
उन संग दुर्व्यवहार किया।
तब हो कुपित प्रकृति ने
ये कोरोना ईजाद किया,
मानव को शिक्षा देने को
वायरस का अवतार लिया।
व्याकुल सारी धरती है
करती हाहाकार यहाँ,
छुपने का भी नहीं ठिकाना
जाए तो अब जाए कहाँ।
सड़कों पर सन्नाटा पसरा
कल कारखाने बन्द हुये,
विचर रहे थे खुले गगन में
सब अपने घरों में बंद हुये।
देख सभी को साथ आज
फिर आंगन हर्षाया है,
सूना था सालों से जो घर
फिर से अब मुस्काया है।
जिसे बुरा कहते थे अब तक
गाँव आज फिर भाया है,
गाड़ी और बंगले से अच्छी
लगे नीम की छाया है।
सुबह धरा को शोभित करने
खिलने लगी है स्वर्णिम धूप,
हरति वसन को धारण कर
धरती लेती है नव नित रूप।
~ ऋषभ तोमर