नए साल में हम सभी को अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों को सम्मान देने का प्रण लेने की जरुरत है। यह उत्सव सिर्फ एक दिन का नहीं होना चाहिए बल्कि प्रतिदिन लोगों का आदर कर अपना मानव धर्म निभाने की आवश्यकता है। नए साल की मुबारकबाद के साथ कलमकार इमरान खान का संदेश इस कविता में पढें।
नए साल में कुछ कर दिखाना, बोलते है सब मचल के,
वर्तमान की फ़िक्र नहीं, उम्मीद करते है सब कल के।
मां फूंक फूंक कर थक जाती है, सर्दी की जकड़ी सी,
फ़िक्र खाने को होता बस, नहीं पता घर में लकड़ी की।
चालीस साल में हुई थी मां, जैसे अस्सी सालों की,
फिर भी रंगने में लगे थे वो अपने अपने बालों की।बाप समुंदर पार से हो चला था एक दम सा बुड्ढा,
गर्ल फ्रेंड को देने के खातिर खरीदने में लगे थे वो गुड्डा।
मां की काली आंखों में वो प्रान कहां रह गया था अब,
बाप के बचपन के गलियारों की वो शान कहां रह गया था अब।
तब तो सही से दीपक भी न था, इस गरीब से गांव में,
गाल धूप से काली पड़ जाएगी, बैठे है वो छांव में।जीन्स टीशर्ट पहन कर दिखते, वो प्रत्येक पहर में,
चरांगा की बात तो दूर, अभी मयस्सर नहीं शहर में।
कंडी लकड़ी बीन बीन कर, बैठी है मां चूल्हे के पास,
जवां बिटिया की शर्ट खुली है, दिखने को कूल्हे के पास।
एक हाथ में फुकनी लेती और एक हाथ में काली चिमटा,
बेटे-बेटियां बाल उड़ाते और देख के खा जाते सब झटका।बाप की कमर तो टूट चुकी थी, अब सात समुंदर पार से,
डांस क्लब में करेंगे वो, अब फिकर नहीं किसी मार से।
धीरे-धीरे व झूठे से करते वो अध पक्का सा इरादा,
ठाठ बाट को चाहिए भी तो उनको भी पैसे ज़्यादा।बॉलीबुडिया दिख जाते पर, न दिखते उनको घर का छप्पर,
यथार्थ में न जी कर वो सब, देते सबको कल्पित सा टक्कर।
इस गफलत में न पड़ पाएगा, कभी न ये हम “इमरान”,
मां-बाप को जो दिलवाना है, नए साल का ससम्मान।~ इमरान संभलशाही
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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