अपने वतन के लिए हमारे मन में सदैव सेवा का भाव रहता है। कलमकार इरफान ने भी कुछ पंक्तियाँ अपने विचार व्यक्त करते हुए “अरज़े हिंद” कविता में लिखीं हैं।
देखो तो आसमान को छूती है अरज़ॆ हिन्द
सोने की तरह खान से निकली है अरज़ॆ हिन्दलो क्यों उदास हो गया अंग्रेज़ का कयाम
लगता है जंग जीत के लौटी हैअरज़ॆ हिन्दकुर्बान मेरे देस की खातिर जवां हुए
क़ुर्बानियो’ के बाद ही निखरी है अरज़ॆ हिन्दऐ दुशमनो निगाह न करना मेरी तरफ
रह रह के हसेदीन से कहती है अरज़ॆ हिंदमहबूब है इस जहान की सारी ज़मीन है
मेरे लिए तो चांद से अच्छी है अरज़ॆ हिन्दसच है स्याह काम से मेरे वतन में आज
मुफलिस पे ज़ुल्म देख के रोती है अरज़ॆ हिन्दमुफलिस,गरीब सोते हैं बेचैन होके जब
तादेर उनको देख के रोती है अरज़ॆ हिन्दक्यों अब यहां की पाक फेजाएं उदास हैं
सरकार तेरे राज से रूठी है अरज़ॆ हिन्दइरफान कह दो फूल से कुछ भीख लेके जा
अंबर के जैसे आज महकती है अरज़ॆ हिन्द~ इरफ़ान आब्दी ग़ाज़ीपुरी
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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