आत्ममंथन

आत्ममंथन

ये कैसी आहट है?
क्या सिर्फ़ हवा का झोंका हैं
जिसने कर दिया अभिभूत सभी को
आज एहसास हो गया कि गुदरत के
आगे किसी की नहीं चलती हैं।

कभी इस दुनियां को अलग-थलग
सपनों का महल बनाते देखी थी!
वह सिर्फ़ ख़्वाब था या हकीकत थी।
हम पहले भी जीरो थे अभी भी है
अपने ही घर में डरे-डरे घूम रहे हैं।

जिंदगी में पहली बार ऐसा देख रही हु कि कोई
अपना प्रिये भी आ जाय तो अच्छा नहीं लग रहा है।
कुदरत ने हमे हमारी औकात,
सब का घमंड चकना चूर कर दिया।

वैसे देखा जाए तो जिंदगी के जीने के लिये
चार दिन भी कम पड़ते है,
आप जैसे ही समझना सुरु करते हैं,
वैसे ही खत्म हो जाती है जिंदगी।

बहुत लोग घमंड में कहते थे
तुम हमे जानते नही हो!
अब ये कुदरत ने ही बता दिया कि,
तुम हमें जानते ही नहीं हो?

अभी ये जो जिंदगी है, यहीं कटु सत्य है।
आत्म मंथन करो, सत्य को स्वीकारो
ईश्वर के लाठी के आगे हम सब ज़ीरो हैं।

~ पुजा कुमारी साह

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